काव्य सौंदर्य-

हस्ती चढि़ए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।


स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।


काव्य सौंदर्य

भाव सौंदर्य- दी गयी पंक्तियों में कबीर ने ज्ञान की तुलना हाथी से की है| यहाँ कवि कह रहा है मनुष्य को इस ज्ञान रुपी हाथी की सवारी गलीचा डाल कर करनी चाहिए| ऐसा करते वक्त अगर यह समाज अथवा संसार उसकी आलोचना करता है तो मनुष्य को उस आलोचना की परवाह नहीं करनी चाहिए| मनुष्य का मूल उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति का होना चाहिए|


शिल्प सौंदर्य


(1) इन पंक्तियों में कवि ने तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है| जैसे कि- ‘हस्ती’, ‘स्वान’, ‘ज्ञान’ आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग है।


(2) इस रचना में भक्ति रस की प्रधानता है।


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